शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

साज़ जबलपुरी

साज़िश ये रौशनी और अँधेरे की देखिये
साया भी मेरा अब कई हिस्‍सों में बँट गया

न थोड़ा प्‍यार करती है, न ज्‍यादा प्‍यार करती है
हमारी ज़िन्‍दगी तो एक सा व्‍यवहार करती है
इसे हर चाहने वाला ये खुशफहमी में जीता है
ये मुझसे प्‍यार करती है, मुझी से प्‍यार करती है

जिसका मक्‍़सद हर तरह से पाक था
कम नज़र लोगों में वो चालाक था
घुटने-घुटने पानी में जो मर गया
लोग कहते हैं कि वो तैराक था

क्‍या करें, कैसे करें, कितना करें, किसका करें
ज़िन्‍दगी हम बोझ तेरा कौन सा हल्‍का करें

बढ़ने लगें जिस वक्‍़त तक़ाजे ये पेट के
सो जाइएगा पैरों को अपने समेट के
इस देश में कोई नहीं नंगा रहेगा अब
हम लोग जियेंगे यहाँ वादे लपेट के

पुस्‍तक 'किरचें' से 

1 टिप्पणी:

जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र ने कहा…

वरिष्ट जन कवि साज 'जबलपुरी'की प्रेरक प्रतिभा को सलाम.कोटा में हाल ही ८-९ सितम्बर १२ को उनके साथ बिताए सभी पल, हम कोटा के चंद अदीबों
को लंबे समय तक प्रेरणा देते रहेंगे. वे यक़ीनन जनता के कवि हैं.१० सितम्बर १२ भी मेरे लिए अविस्मरनीय ही रहेगा.उस दिन अपरान्ह ३ बजे से रात ९.३० बजे तक उनके साथ, जबलपुर के ही आचार्य भगवत दुबे, हैदराबाद के नेह्पाल वर्मा, कोटा से मैं स्वयं,गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल',शिवराज श्रीवास्तव और रामेश्वर शर्मा'रम्मू भैया'की मेरे( जन कवि डॉ. रघुनाथ मिश्र) के अनौपचारिक संचालन में अविष्मर्णीय और अभूतपूर्व काव्यसंध्या का लुफ्त लिया और नोट किया गया की ऐसा आनंद बड़े-बड़े मंचों से भी नहीं मिल पाता. इन विद्वान कवियों की सर्वसम्मत राय के अनुसार "कविता इसी प्रकार की गोष्ठियों में ही अपने असली और समग्र रूप में सार्थक -सकारात्मक असर छोडती है-कवि सम्मेलनों के मंचों से आज यह प्रभाव लुप्तप्राय होता जा रहा है".
जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र